चार धाम यात्रा पर आयीं महादेवी वर्मा को जब भा गया रामगढ़
उत्तराखंड का रामगढ़ आज भी महादेवी वर्मा की यादों को संजोए हुए है. रामगढ़ से महादेवी का गहरा नाता रहा है. वो निकली तो थी ...अधिक पढ़ें
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उत्तराखंड का रामगढ़ आज भी महादेवी वर्मा की यादों को संजोए हुए है. रामगढ़ से महादेवी का गहरा नाता रहा है. वो निकली तो थीं चार धाम यात्रा के लिए लेकिन यहां की फिज़ाओं ने उन्हें इस कदर आकर्षित किया कि उन्होंने यहां घर बनवाया और नाम रखा मीरा कुटीर.
महादेवी वर्मा 1937 में बद्री-केदार की यात्रा पर आयी थीं. यहां की प्राकृतिक सुंदरता और आबो-हवा उन्हें ऐसी भाई कि यहीं रहने का मन बना लिया.इसी मीरा कुटीर में महादेवी ने साहित्य लेखन भी किया. मीरा कुटीर में रहकर कविता संग्रह दीपशिखा के साथ अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के शब्दचित्र भी लिखे. महादेवी की ये मीरा कुटीर अज्ञेय, सुमित्रा नंदन पंत,इलाचन्द्र जोशी, दिनकर,अमृत लाल नागर,धर्मवीर भारती सहित और भी कई साहित्यकारों की गवाह बनी.
गागर में बने इस घर में महादेवी से जुड़ी यादों को संजोया गया है.उनकी लेखनी डेस्क हो, लैम्प या फिर उनकी लिखी किताबें सब कुछ आज मिलेगा.महादेवी वर्मा ने यहां रहकर ना सिर्फ साहित्य सृजन किया बल्कि ग़रीब बच्चियों को शिक्षा देकर आत्म निर्भर बनाया.ये मीरा कुटीर पुराने साहित्यकारों को पुरानी यादों से भर देती है और युवाओं को ऊर्जा देती है. साहित्यिक महत्व को समेटे इस मीरा कुटीर के संरक्षण की मांग उठ रही है.