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जीएनएलपी : बढ़ाएं मस्तिष्क की शक्ति
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जीएनएलपी : बढ़ाएं मस्तिष्क की शक्ति
तेज रफ्तार से दौड़ती दुनिया और इस दुनिया के साथ चलते रहने का स्ट्रैस एक ऎसी चुनौती है, जिससे निपटना आसान नहीं है। ज्यादातर लोग इस दबाव से टूट जाते हैं और तनाव, चिंता, अवसाद आदि के शिकार हो जाते हैं। स्ट्रैस मैनेजमेंट कैसे संभव है, इसके लिए अहमदाबाद के स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट मुरली मेनन ने घ्यान की एक कारगर पद्धति "जीएनएलपी" सुझाई है।

क्या है जीएनएलपी
यह जापानी घ्यान पद्धति जेन और न्यूरो लिग्विस्टिक प्रोग्रामिंग को मिलाकर विकसित की गई है। जेन शब्द जापानी भाषा के शब्द "जेन" से बना है। यह "जान" भारतीय "घ्यान" का ही रूप है। चीनी संत "घ्यान" का उच्चारण "चान" के रूप में करते थे। यह "चान" की जापानी भाषा में "जान" और अब जेन बन गया है। इसे एनएलपी के साथ जोड़ दिया गया। यह पद्धति मानती है कि मस्तिष्क की शक्ति को घ्यान की सहायता से कई गुना बढ़ाया जा सकता है और जीवन के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
मुरली का दावा है कि जीएनएलपी की सहायता से दबाव और तनाव ही नहीं, पीठ का दर्द, लकवा, मांसपेशियों मे खिंचाव कैंसर, मघुमेह व अस्थमा जैसे रोगों का उपचार भी संभव है। इस पद्धति में वे दबाव और तनाव को कम करने के लिए आदिवासी संगीत का प्रयोग भी करते हैं।

मन की शक्ति
इस पद्धति को मुरली ने भारत व अमरीका में पेटेंट करवाया है। उन्होंने इस संबंघ में "जीएनएलपी-द पॉवर टू सक्सीड" नाम से एक पुस्तक भी लिखी है। यह पुस्तक मुरली की घ्यान पद्धति का आघार समझाते हुए दबाव और तनाव का मुकाबला करने के तरीके समझाती है। पुस्तक में कहा गया है कि पूरा ब्रrाांड, जिसके हम एक भाग है, "कॉस्मिक कांशयसनैस" नामक ऊर्जा से निर्मित है। पुस्तक खुद का विकास करने याददाश्त बढ़ाने, मन-मस्तिष्क को एकाग्र करने और आज के प्रतिस्पर्द्धी वातावरण के दबावों का सामना करने के गुर सिखाती है।

प्रेरणा
पूरी दुनिया में इस पद्धति का प्रचार-प्रसार करने वाले मुरली मेनन स्वयं कैसे इसके सम्पर्क में आए, यह जानना भी कम रोचक नहीं है। वस्तुत: उनका जीवन स्वयं एक प्रेरणा है। मुरली एक स्वीडिश दवा कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर हुआ करते थे। एक जनवरी 1995 को बंगलौर में एक ट्रक से उनकी टक्कर हुई और उनके दाएं मस्तिष्क में गहरी चोट आई। मुरली के शरीर का बायां हिस्सा भी लकवे का शिकार हो गया। मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों का कहना था कि अब उन्हें अपनी पूरी जिंदगी व्हील चेयर पर ही गुजारनी होगी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अस्पताल के बिस्तर पर ही पड़े-पड़े उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया। लेकिन अपने हाथ से नहीं बायीं आंख की पलकों के सहारे। वे बोल या लिख नहीं सकते थे केवल पलक झपका सकते थे। अस्पताल की एक नर्स उनकी इन पलकों के झपकने का मतलब समझाती थी। एक बार पलक झपकाने का अर्थ होता था "ए" और दो बार पलक झपकाने का मतलब था "बी"। इसी तरह 26 बार पलक झपकाने का मतलब होता था "जेड"। चार माह में मुरली ने 32 कविताएं लिख डालीं। इससे पहले उन्होंने कभी कविता नहीं की थी। इसके बावजूद इस कविता संग्रह के लिए उन्हें एक अमरीकी संस्था ने "नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पोएट्री" पुरस्कार दिया।

बीमारी के दौरान ही मुरली ने एनएलपी के बारे में जाना। इसके लिए उन्होंने कैलिफोर्निया के डॉ. जॉन कैनेडी का तीन माह का प्रशिक्षण लिया। मुरली ने इस एनएलपी को ही जापानी घ्यान पद्धति जेन से जोड़कर जीएनएलपी पद्धति विकसित की। स्वयं मुरली ने इस पद्धति की सहायता से ही अपने रोग पर विजय प्राप्त की। और आज दुनिया के लोगों तक यह पद्धति पहुंचा रहे हैं।
मुरली अपनी पद्धति पर दुनियाभर में कार्यशालाएं करते हैं। इनमें मस्तिष्क की दृष्टि बढ़ाने के लिए लोगों को "चक्र" घ्यान करने के लिए बताया जाता है। इसी प्रकार श्रवण शक्ति बढ़ाने के लिए ओम का उच्चारण करवाया जाता है। स्पर्श शक्ति बढ़ाने के लिए लोगों को उनके विचार कागज पर उतारने के लिए कहा जाता है।

इस पद्धति को अपनाने वाले को पूरी तरह शाकाहारी होना आवश्यक है। यहां तक कि दूघ और घी का प्रयोग भी वर्जित है। यह शाकाहार सिर्फ खाने-पीने में ही नहीं, पहनने, ओढ़ने में भी होना चाहिए। अर्थात ऊन, सिल्क, फर व चमड़े की बनी कोई वस्तु या वस्त्र घारण नहीं कर सकते।
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