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{{Infobox scholar|birth_date=अस्पष्ट,६-४ बीसीई|notable_ideas=परमाणु सिद्धांतपरमाणुवाद|major_works=वैशिका[[वैशेषिक सूत्र]]|school_tradition=[[वैशेषिक दर्शन]]|image=Kanada.png}}
 
'''कणाद''' एक ऋषि थे। [[वायुपुराण]] में उनका जन्म स्थान [[प्रभास पाटण]] बताया है। स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने [[सूत्र]] रूप में लिखा। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि [[कण]] अर्थात् 'परमाणु तत्व' का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "[[उल्लू]]" पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया।
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भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद थे।
 
== वैशेषिक सूत्र ==
==गति के नियम==
{{मुख्य|वैशेषिकसूत्र}}
इसके अलावा महर्षि कणाद ने ही [[न्यूटन (इकाई)|न्यूटन]] से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। <ref>[http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/के-असली-जनक-तो-ये-हैं-114080700018_1.htm परमाणु सिद्धांत के असली जनक तो ये हैं...] (वेबदुनिया)</ref>
'''वैशेषिकसूत्र''' कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन का मुख्य ग्रन्थ है। इस पर अनेक टीकाएं लिखी गयीं जिसमें [[प्रशस्तपाद]] द्वारा रचित पदार्थधर्मसङ्ग्रह प्रसिद्ध है। कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छः पदार्थों का निर्देश किया है।
 
वैशेषिक दर्शन [[न्याय दर्शन]] से बहुत साम्य रखता है किन्तु वास्तव में यह एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। इस प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में ([[वैशेषिकसूत्र]] में) लिखा। यह दर्शन "औलूक्य", "काणाद", या "पाशुपत" दर्शन के नामों से प्रसिद्ध है। इसके सूत्रों का आरम्भ "अथातो धर्मजिज्ञासा" से होता है। इसके बाद दूसरा सूत्र है- "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसिद्धिः स धर्मः" अर्थात् जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि होती है, वह [[धर्म]] है। इसके लिये समस्त अर्थतत्त्व को छः ' पदार्थों ' (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय) में विभाजित कर उन्हीं का मुख्य रूप से उपपादन करता है। वैशेषिक दर्शन और [[पाणिनीय व्याकरण]] को सभी शास्त्रों का उपकारक माना गया है-
: '' वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते। वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु। वेगः संयोगविशेषविरोधी॥'' [[वैशेषिक दर्शन]]
 
: अर्थात्‌ वेग या मोशन (motion) पांचों द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
वैशेषिक सिद्धान्तों का अतिप्राचीनत्व प्रायः सर्वस्वीकृत है। महर्षि कणाद द्वारा रचित वैशेषिकसूत्र में [[बौद्ध धर्म|बौद्धों]] के सिद्धान्तों की समीक्षा न होने के कारण यह भी स्वीकार किया जा सकता है कि कणाद बुद्ध के पूर्ववर्ती हैं। जो विद्वान कणाद को बुद्ध का पूर्ववर्ती नहीं मानते, उनमें से अधिकतर इतना तो मानते ही हैं कि कणाद दूसरी शती ईस्वी पूर्व से पहले हुए होंगे। संक्षेपतः सांख्यसूत्रकार [[कपिल मुनि|कपिल]] और [[ब्रह्मसूत्र]]कार व्यास के अतिरिक्त अन्य सभी आस्तिक दर्शनों के प्रवर्त्तकों में से कणाद सर्वाधिक पूर्ववर्ती हैं। अतः वैशेषिक दर्शन को [[सांख्य दर्शन|सांख्य]] और [[वेदान्त]] के अतिरिक्त अन्य सभी भारतीय दर्शनों का पूर्ववर्ती मानते हुए यह कहा जा सकता है कि केवल दार्शनिक चिन्तन की दृष्टि से ही नहीं, अपितु अतिप्राचीन होने के कारण भी इस दर्शन का अपना विशिष्ट महत्व है।
 
== सन्दर्भ ==
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==इन्हें भी देखें==
*[[वैशेषिकसूत्र]]
*[[वैशेषिक दर्शन]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.shirishsapre.com/%E0%A4%95%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE '''कणाद''' : वैशेषिक दर्शन के प्रणेता]{{Dead link|date=जूनअगस्त 20202023 |bot=InternetArchiveBot }}
 
{{आधार}}
{{भारतीय दर्शन}}
{{ऋषि}}
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]
कणाद के अनुसार"किसी झरोखे से आती हुई रोशनी में उड़ते हुए कण का 16वां भाग परमाणु होता है"
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कणाद" से प्राप्त