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{{Infobox scholar|birth_date=अस्पष्ट,६-४ बीसीई|notable_ideas=परमाणु सिद्धांत|major_works=वैशिका सूत्र}}
 
'''कणाद''' एक ऋषि थे। [[वायुपुराण]] में उनका जन्म स्थान [[प्रभास पाटण]] बताया है। स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने [[सूत्र]] रूप में लिखा। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि [[कण]] अर्थात् 'परमाणु तत्व' का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "[[उल्लू]]" पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया।
 
आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी [[जॉन डाल्टन]] के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि [[द्रव्य]] के परमाणु होते हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कणाद" से प्राप्त