बूट पॉलिश (1954 फ़िल्म)
बूट पॉलिश | |
---|---|
बूट पॉलिश का पोस्टर | |
निर्देशक | प्रकाश अरोड़ा |
लेखक | भानु प्रताप |
निर्माता | राज कपूर |
अभिनेता |
कुमारी नाज़, डेविड, |
छायाकार | तारा दत्त |
संपादक | जी. जी. मयेकर |
संगीतकार | शंकर जयकिशन |
प्रदर्शन तिथि |
1954 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
बूट पॉलिश 1954 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
संक्षेप
[संपादित करें]भोला और बेलू दो भाई बहन हैं जिनकी माँ का देहान्त हो गया है और पिता को कारावास। उनको उनकी दुष्ट चाची कमला के साथ रहने जाना पड़ता है। कमला उनसे भीख मँगवाती है और उन्हें बुरा-भला कहती है। एक अवैध शराब बनाने वाला, जिसको बच्चे जॉन चाचा (डेविड) के नाम से जानते हैं, उनको भीख माँगना छोड़कर एक स्वाभिमान की ज़िन्दगी जीने की सलाह देता है। बच्चे उसकी बात मानकर कुछ पैसे बचाकर बूट पॉलिश का सामान ख़रीदते हैं। जब कमला को इस बात का पता चलता है तो वह उनका सामान छीनकर उन्हें मारती है और घर से निकाल देती है।
वर्षा होने के कारण अब कोई भी व्यक्ति उनसे बूट पॉलिश भी नहीं कराता है और दोनों को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता है। असहाय बच्चे तब भुखमरी के कगार पर पहुँच जाते हैं जब जॉन चाचा को अवैध शराब बनाने के जुर्म में हिरासत में ले लिया जाता है। एक दिन रेलवे स्टेशन पर अनाथ बच्चों को अनाथालय ले जाने की पकड़ धकड़ चल रही थी। बेलू ट्रेन में चढ़कर बच निकलती है और भोला से बिछड़ जाती है। ट्रेन में बेलू को एक अमीर दम्पत्ति गोद ले लेती है। बेलू भोला से बिछड़कर दुःखी हो जाती है।
बूट पॉलिश का काम शुरु करने के बाद भोला ने बेलू को भीख माँगने से मना किया था और यहाँ तक कि बेलू ने कहा न मानने पर उसपर हाथ भी उठाया था, लेकिन अब हालात इतने नाज़ुक हो जाते हैं कि भोला को ख़ुद भीख माँगने की नौबत आ जाती है और एक दिन जब वह रेलवे स्टेशन पर भीख माँग रहा होता है तो उसकी मुलाक़ात बेलू से हो जाती है। फिर दोनों बच्चों को वह अमीर दम्पत्ति गोद ले लेती है। फ़िल्म के अन्त में दिखाया गया है कि अब दोनों बच्चे स्कूल जा रहे हैं।
चरित्र
[संपादित करें]मुख्य कलाकार
[संपादित करें]- कुमारी नाज़
- डेविड - जॉन
दल
[संपादित करें]संगीत
[संपादित करें]इस फ़िल्म के गीतकार थे शैलेन्द्र और संगीतकार थे शंकर जयकिशन।
गीत | गायक | |
---|---|---|
१ | रात गई फिर दिन आता | मन्ना डे, आशा भोंसले |
२ | नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है | मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले |
३ | चली कौन से देश गुजरिया | तलत महमूद, आशा भोंसले |
४ | लपक झपक तू आ रे बदरवा | मन्ना डे |
५ | सारी दुनिया है मुझपे दीवानी | आशा भोंसले |
६ | ठहर ज़रा ओ जानेवाले | आशा भोंसले, मन्ना डे, मधुबाला झावेरी |
७ | तुम्हारे हैं तुमसे दुआ माँगते हैं | आशा भोंसले, मन्ना डे |
८ | जॉन चाचा तुम कितने अच्छे | आशा भोंसले |
९ | बढ़ता चल | मन्ना डे |
रोचक तथ्य
[संपादित करें]परिणाम
[संपादित करें]बौक्स ऑफिस
[संपादित करें]समीक्षाएँ
[संपादित करें]नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]इस फ़िल्म को १९५५ में तीन फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - राज कपूर
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार - तारा दत्त
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - डेविड