सफ़्फ़ारी राजवंश
سلسله صفاریان सिलसिला सफ़्फ़ारियान सफ़्फ़ारी साम्राज्य | |||||
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अपने चरम पर सफ़्फ़ारी साम्राज्य
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राजधानी | ज़रंज, अफ़ग़ानिस्तान | ||||
भाषाएँ | फ़ारसी (राजभाषा) | ||||
धार्मिक समूह | सुन्नी इस्लाम | ||||
शासन | साम्राज्य | ||||
अमीर | |||||
- | ८६१-८७९ | याक़ूब बिन लैथ़ अस-सफ़्फ़ार (प्रथम) | |||
- | ९६३-१००२ | ख़लफ़ प्रथम (अंतिम) | |||
ऐतिहासिक युग | मध्यकालीन | ||||
- | स्थापित | ८६७ | |||
- | अंत | १००२ | |||
आज इन देशों का हिस्सा है: | आधुनिक देश
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सफ़्फ़ारी राजवंश (फ़ारसी: صفاریان, अंग्रेज़ी: Saffarids) सीस्तान क्षेत्र से उत्पन्न एक मध्यकालीन राजवंश था जिसने पूर्वी ईरान, ख़ुरासान, अफ़ग़ानिस्तान व बलोचिस्तान पर ८६१ ईसवी से १००२ ईसवी तक राज किया। इस राजवंश की नीव याक़ूब बिन लैथ़ अस-सफ़्फ़ार ने रखी जो एक स्थानीय अय्यार (लड़ाका) था। उसके पिता लैथ़ ताम्बे का काम करते था जिसे व्यवसाय को फ़ारसी भाषा में 'सफ़्फ़ार' कहते हैं, लेकिन उसने यह पारिवारिक पेशा छोड़कर अय्यारी शुरू कर दी। उसने इस्लाम के नाम पर पहले सीस्तान क्षेत्र और फिर अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया।
साम्राज्य का विस्तार
[संपादित करें]सफ़्फ़ारियों ने ज़रंज शहर को अपनी राजधानी बनाया जो आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित नीमरूज़ प्रान्त में है। यहाँ से वे पूर्व और पश्चिम दोनों ओर फैले। पहले उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के हिन्दू कुश पर्वतों में हिन्दू-बौद्ध क्षेत्रों पर हमला बोला, जिसमें पहले ज़मीनदावर, ज़ूनबील और काबुल और फिर बामियान, बल्ख़, बादग़ीस और ग़ोर शामिल थे। इन अभियानों में उसने बहुत धन लूटा और बहुत से स्थानीय लोगों को बेचने के लिए गुलाम बना लिया।[1][2] ८७३ ईसवी में उसने ईरानी-मूल के ताहिरी राजवंश ख़ुरासान छीन लिया। जब तक याक़ूब का देहांत हुआ, वह काबुल वादी, सिंध, तुषारिस्तान, केरमान, फ़ार्स और ख़ुरासान ले चुका था। उसने बग़दाद भी पहुँचने की कोशिश करी लेकिन अब्बासी ख़िलाफ़त द्वारा हराया गया।[3] सफ़्फ़ारियों ने अपने राज्य में हमेशा फ़ारसी भाषा और ईरानी संस्कृति को बहुत बढ़ावा दिया।
साम्राज्य का पतन
[संपादित करें]याक़ूब की मौत के बाद सफ़्फ़ारी साम्राज्य ज़्यादा दिन चल न सका। उसका उत्तराधिकारी उसका भाई आम्र बिन लैथ़ था जिसे ९०० ईसवी में सामानी साम्राज्य के इस्माइल सामानी ने बल्ख़ में हरा दिया और अपने अधिकतर क्षेत्र को सामानियों के हवाले देने के लिए विवश कर दिया। इसके बाद सफ़्फ़ारी अपने सीस्तान की मातृभूमि तक सीमित रह गए और सामानियों के अधीन वहीं के स्थानीय राजा बनकर रह गए। सन् १००२ में महमूद ग़ज़नवी ने सीस्तान पर हमला किया और ख़लफ़ प्रथम को सिंहासन से हटाकर सफ़्फ़ारी राजवंश का अंत कर दिया।[4]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ The Development of Persian Culture under the Early Ghaznavids, C.E. Bosworth, Iran, Vol. 6, (1968), 34.
- ↑ Saffarids, C.E. Bosworth, Encyclopedia of Islam, Vol. VIII, Ed. C.E.Bosworth, E. van Donzel, W.P.Heinrichs and G. Lecomte, (Brill, 1995), 795.
- ↑ "An Historical Guide To Afghanistan", Nancy Dupree, "Sites in Perspective (Chapter 3)", Afghan Tourist Organization, Kabul, 1971, OCLC 241390, ... Arab armies carrying the banner of Islam came out of the west to defeat the Sasanians in 642 and then they marched with confidence to the east. On the western periphery of the Afghan area the princes of Herat and Sistan gave way to rule by Arab governors but in the east, in the mountains, cities submitted only to rise in revolt and the hastily converted returned to their old beliefs once the armies passed. The harshness and avariciousness of Arab rule produced such unrest, however, that once the waning power of the Caliphate became apparent, native rulers once again established themselves independent. Among these the Saffarids of Sistan shone briefly in the Afghan area. The fanatic founder of this dynasty, the coppersmith’s apprentice Yaqub ibn Layth Saffari, came forth from his capital at Zaranj in 870 and marched through Bost, Kandahar, Ghazni, Kabul, Bamyan, Balkh and Herat, conquering in the name of Islam ...
- ↑ C.E. Bosworth, The Ghaznavids 994-1040, pp. 89, Edinburgh University Press, 1963.