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- भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 में निहित भागीदारी फर्म से संबंधित कानून।
- अधिनियम की धारा 58 के तहत एक फर्म को उस क्षेत्र की फर्मों के पंजीयक के साथ एक आवेदन जमा करने के माध्यम से किसी भी समय (केवल इसके निर्माण के समय ही नहीं बल्कि इसके बाद भी) पंजीकृत कराया जा सकता है, जो किसी फर्म के व्यापार के स्थान या प्रस्तावित स्थान पर हो सकता है।
- आवेदन में निम्नलिखित जानकारियां होनी चाहिए:-
- फर्म का नाम
- व्यापार का स्थान या प्रधान स्थान
- किसी अन्य स्थान का नाम जहां फर्म व्यापार करती है
- वह तिथि जब भागीदार ने फर्म में हिस्सेदारी की
- भागीदारों का पूरा नाम और स्थायी पता
- फर्म की अवधि
- आवेदन पत्र पर सभी भागीदारों या उनके विधिवत अधिकृत एजेंटों द्वारा हस्ताक्षरित किए जाएंगे और इनका सत्यापन किया जाएगा।
- आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क और निम्नलिखित दस्तावेज होंगे:
- एक कंपनी को निहित करने के लिए निर्धारित पंजीकरण फार्म (फॉर्म नं. 1 और शपथ पत्र का नमूना)
- भागीदारी प्रलेख की सत्यापित सत्य प्रतिलिपि
- व्यापार के प्रधान स्थान का स्वामित्व प्रमाण
- फर्म के नाम में ऐसे शब्द निहित नहीं होने चाहिए जो सरकार के अनुमोदन या संरक्षण को अभिव्यक्त या लागू करते हों, सिवाए इसके कि सरकार ने फर्म के नाम के हिस्से के रूप में इन शब्दों के उपयोग पर लिखित स्वीकृति दी हो।
- अधिनियम की धारा 59 के तहत, जहां फर्मों के पंजीयक को यह संतुष्टि है कि धारा 58 के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन किया गया है, वह फर्मों के रजिस्टर में वक्तव्य की एक प्रविष्टि दर्ज करेगा और पंजीकरण का एक प्रमाणपत्र जारी करेगा।
- झूठे विवरण देने पर दण्ड (धारा 70)
एक व्यक्ति जो किसी वक्तव्य पर हस्ताक्षर करता है, किसी वक्तव्य में संशोधन करता है, इस अध्याय के तहत कोई सूचना या जानकारी देता है जिसमें ऐसे कोई विवरण है, जिनके बारे में वह जानता है कि गलत हैं या सच्चे होने पर विश्वास नहीं करता अथवा ऐसे कोई विवरण निहित है, जिनके बारे में वह जानता है कि अपूर्ण है या विश्वास करता है कि पूरे नहीं है, उसे कारावास के साथ दण्ड दिया जा सकता है, जिसे 3 माह तक बढ़ाया जा सकता है, अथवा आर्थिक दण्ड अथवा दोनों दिए जा सकते हैं।
- पंजीकरण के बाद किए गए किसी भी परिवर्तन की अधिसूचना पंजीयक को दी जाएगी:-
- फर्म के नाम और व्यापार के प्रधान स्थान (धारा 60) में बदलाव की जानकारी निर्धारित शुल्क और सभी भागीदारों द्वारा विधिवत हस्ताक्षर तथा सत्यापन के बाद एक नए आवेदन पत्र के साथ भेजी जाएगी।
- सभी शाखाओं के खुलने और बंद से संबंधित परिवर्तन (धारा 61)
जब एक पंजीकृत फर्म किसी स्थान पर अपना व्यापार रोक देती है अथवा किसी अन्य स्थान पर अपना व्यापार आरंभ करती है तो इन स्थानों को व्यापार का प्रधान स्थान नहीं माना जाता है, फर्म के कोई भागीदार या एजेंट इसकी सूचना पंजीयक को भेज सकते हैं।
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किसी भागीदार के नाम और स्थायी पते में बदलाव (धारा 62)
एक पंजीकृत फर्म का एक भागीदार अपना नाम या स्थायी पता बदलता है तो इस परिवर्तन की जानकारी किसी भागीदार या फर्म के एजेंट द्वारा पंजीयक के पास भेजी जाए।
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फर्म के संगठन में परिवर्तन और इसका समापन [धारा 63(1)]
जब एक फर्म के संगठन में परिवर्तन होता है तो नए में से कोई भी, पिछले जारी रखने वाले या बाहर जाने वाले भागीदार, जब पंजीकृत फर्म का समापन किया जाता है, कोई व्यक्ति जो समापन के तत्काल पहले एक भागीदार थे। अथवा उक्त भागीदार के कोई एजेंट या उनकी ओर से विशेष रूप से अधिकृत कोई व्यक्ति निर्दिष्ट तिथि आदि बताते हुए पंजीयक के पास इस बदलाव की सूचना दे सकते हैं।
- धारा 63(2), के तहत जब एक अल्प वयस्क व्यक्ति को एक फर्म में भागीदारी का लाभ पाने के लिए दाखिल किया जाता है जिसे बहुमत मिलता है और वह एक भागीदार बनने या नहीं बनने के लिए निर्वाचित होता है, इसके एजेंट विशेष रूप से इस के लिए अधिकृत, पंजीयक को यह सूचना दे सकते हैं कि वह भागीदार बन गया है या नहीं बना है।
- तदनुसार पंजीकृत भागीदारी में परिवर्तनों के लिए भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के तहत निर्धारित विभिन्न फार्म इस प्रकार हैं:-
क. फॉर्म नं. II :- फर्म के नाम में बदलाव और व्यापार के प्रधान स्थान में बदलाव के लिए।
ख. फॉर्म नं. III :- व्यापार के प्रधान स्थान में बदलाव के लिए।
ग. फॉर्म नं. IV :- भागीदारी के नाम में बदलाव और भागीदारों के स्थायी पते में बदलाव के लिए।
घ. फॉर्म नं. V :- रूपों के गठन और संवर्धन में बदलाव या भागीदार की सेवा निवृत्ति के लिए।
ड. फॉर्म नं.VI :- फर्म के समापन के लिए।
च. फार्म नं. VII :- फर्म के अल्प वयस्क भागीदार के वयस्क हो जाने पर।
- भागीदारी अधिनियम, 1932 ने फॉर्मों के अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता नहीं बताई गई है। यह भागीदारों के लिए वैकल्पिक है कि वे फर्म का पंजीकरण कराएं और पंजीकरण नहीं कराने पर कोई दण्ड नहीं है।
तथापि अधिनियम की धारा 69, जिसमें गैर-पंजीकरण के प्रभाव बताए गए हैं, में कुछ अपंजीकृत फर्मों को कुछ विशिष्ट अधिकार नहीं दिए जाते हैं। इस अधिनियम के तहत :-
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अपंजीकृत फर्म के कोई भागीदार फर्म अथवा अन्य भागीदारों के विरुद्ध किसी न्यायालय में संविदा से उत्पन्न किसी अधिकार को लागू करने या भागीदारी अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी अधिकार को लागू करने के लिए मामला दर्ज नहीं करा सकते, जब तक कि फर्म पंजीकृत नहीं हो और मामला दर्ज कराने वाले व्यक्ति को फर्म के रजिस्टर में फर्म के एक भागीदार के रूप में दर्शाया गया हो।
- एक संविदा से उत्पन्न अधिकार को लागू करने के लिए किसी न्यायालय में कोई मामला किसी तृतीय पक्ष द्वारा एक फर्म की ओर से या उसके द्वारा नहीं दर्ज कराया जा सकता, जब तक कि फर्म पंजीकृत नहीं है और मामला दर्ज कराने वाले व्यक्तियों को फर्म के रजिस्टर में फर्म के भागीदारों के रूप में दर्शाया गया हों।
- एक अपंजीकृत फर्म या इसके भागीदार तृतीय पक्ष के साथ एक विवाद में एक दावा (अर्थात एक दूसरे के साथ विवाद करने वाले पक्षों पर ऋणों के आपसी समायोजन पर) या अन्य कार्रवाइयों का दावा नहीं कर सकती।
अत: प्रत्येक फर्म को सलाह दी जाती है कि अभी या बाद में पंजीकरण अवश्य कराएं।
- तथापि एक भागीदारी फर्म के गैर-पंजीकरण से निम्नलिखित पर प्रभाव नहीं पड़ेगा:-
- फर्म और/या इसके भागीदारों पर मामला दर्ज करने के लिए तृतीय पक्षों का अधिकार।
- फर्मों में स्थित भागीदार या फर्म, जिनका संघ राज्य में व्यापार का कोई स्थान नहीं है, जिनके लिए यह अधिनियम लागू होता है, अथवा कथित राज्य क्षेत्र में जिनके व्यापार स्थान उन क्षेत्रों में स्थित है जहां यह अधिनियम लागू नहीं होता है।
- प्रेसिडेंसी कस्बों में कोई मामला या दावा या सैट ऑफ, जो मूल्य में एक सौ रुपए से अधिक होता है, प्रेसिडेंसी स्मॉल कॉज़ कोर्ट अधिनियम, 1882 (1882 का 15) की धारा 19 में निर्दिष्ट प्रकार का नहीं हैं, अथवा यह प्रेसिडेंसी कस्बों के बाहर प्रोवेंसियल स्मॉल कॉज़ कोर्ट अधिनियम 1887, (1887 का 9) की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट प्रकार का नहीं है, जो निष्पादन की किसी कार्रवाई या अन्य कार्रवाइयों के अनुषंगी या ऐसे किसी मामले या दावे से उठने वाली कार्रवाई के प्रति नहीं है।
- एक फर्म या एक समाप्त की गई फर्म के खातों के लिए मामला दर्ज कराने के अधिकार का प्रवर्तन या एक समाप्त की गई फर्म की संपत्ति की वसूली का अधिकार या शक्ति।
- प्रेसिडेंसी टाउन शोधन क्षमता अधिनियम, 1909 (1909 का 3), अथवा प्रोविंसियल शोधन क्षमता अधिनियम, 1920 (1920 का 5), एक ऋण ग्रस्त भागीदार की संपत्ति की वसूली हेतु।
- गलतियों का सुधार (अधिनियम की धारा 64)
- पंजीयक के पास हर समय किसी भी गलती को सुधारने का अधिकार है ताकि किसी फर्म से संबंधित जानकारी को इस अधिनियम के तहत दर्ज कराए गए उस फर्म के दस्तावेज़ों के अनुरूप फर्मों के रजिस्टर में प्रविष्टि की जा सके।
- उन सभी पक्षकारों द्वारा आवेदन देने पर, जिन्होंने इस अधिनियम के तहत दर्ज एक फर्म से संबंधित दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए हैं, पंजीयक द्वारा इन दस्तावेज़ों में किसी गलती को सुधारा जा सकता है या अभिलेखित किया जा सकता है अथवा फर्मों के रजिस्टर में इसे दर्ज किया जा सकता है।
- रजिस्टर का निरीक्षण और जमा किए गए दस्तावेज (अधिनियम की धारा 66)
- फर्मों के रजिस्टर उक्त शुल्क के भुगतान पर किसी व्यक्ति के निरीक्षण हेतु खोले जाएंगे जैसा निर्धारित किया गया है।
- इस अधिनियम के तहत दर्ज कराए गए सभी वक्तव्य, सूचना और जानकारियां उक्त शर्तों के अधीन निरीक्षण हेतु उक्त शुल्क के भुगतान पर खुली होंगी जैसा निर्धारित किया गया है।
- अनुदान की प्रतियां (अधिनियम की धारा 67)
पंजीयक द्वारा उक्त शुल्क के भुगतान पर किसी व्यक्ति को आवेदन प्रस्तुत किया जाएगा, जो उनके द्वारा प्रमाणित हो तथा फर्मों के रजिस्टर पर कोई प्रविष्टि या इसका भाग हों।
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