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यूरोपीय संघ का सफ़रनामा-1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
24 जनवरी, 1948 शांतिपूर्ण यूरोप की योजनाएं दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद यूरोप के एक बड़े हिस्से में राष्ट्रवाद के लिए ज़बरदस्त जोश उमड़ा और संघवाद के लिए भी प्रबल समर्थन देखा गया. यूरोपीय संघ के संघवादियों ने 1948 में हेग में इस उम्मीद के साथ एक सम्मेलन किया कि एक यूरोपीय संविधान बना लिया जाएगा. लेकिन ब्रिटेन ने संघवाद के इस विचार को नकार दिया जिसके फलस्वरूप यूरोपीय परिषद का जन्म हुआ. यह कोई बहुत ताक़तवर नहीं थी और इसे यूरोप में मानवाधिकारों की देखरेख की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. 28 फ़रवरी, 1949 नैटो को जन्म देने वाली वाशिंगटन संधि पर अमरीका, कनाडा और दस पश्चिमी यूरोपीय देशों - ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, आइसलैंड, नौर्वे, इटली और पुर्तगाल ने हस्ताक्षर किए. नैटो संधि का मुख्य प्रावधान यह था कि अगर किसी भी सदस्य देश पर हमला होता है तो उसे पूरे संगठन पर हमला माना जाएगा और बाक़ी देश उसकी एकजुट होकर उसकी सुरक्षा के लिए कार्रवाई करेंगे. अमरीका ने यूरोप के एकीकरण को अपना समर्थन तो दिया लेकिन इस मामले में कुछ ठोस प्रगति नहीं हो पाई.
28 फ़रवरी, 1950 फ्रांस के विदेशमंत्री रॉबर्ट शूमाँ ने कोयला और स्टीम उत्पादन में सहयोग के लिए जर्मनी और फ्रांस के लिए एक योजना घोषित की. कुछ अन्य देशों को भी इसमें शामिल होने का न्यौता दिया गया. शूमाँ योजना इस विचार पर आधारित थी कि शांति के लिए यूरोपीय एकता बहुत ज़रूरी है. रॉबर्ट शूमाँ ने कहा कि उत्पादन में सहयोग से फ्रांस और जर्मनी के बीच सहयोग और दोस्ती की नई शुरूआत होगी और दोनों युद्ध से परे हटकर शांति के बारे में सोचना शुरू करेंगे. 28 फ़रवरी, 1951 पेरिस संधि ने यूरोपीय कोयला और स्टील संगठन (ईसीएससी) का गठन हुआ. इस पर छह देशों-फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग और इटली ने हस्ताक्षर किए. कोयला और स्टील उद्योगों की देखभाल के लिए एक उच्च दर्जे का प्राधिकरण बनाया गया. इस प्राधिकरण के अधिकारों को संतुलित करने के लिए जर्मनी के समर्थन से नीदरलैंड ने एक मंत्रि परिषद के गठन पर भी ज़ोर दिया जिसमें सदस्य देशों से मंत्री शामिल किए जाएं. 29 फ़रवरी, 1952 यूरोपीय कोयला और स्टील संगठन (ईसीएससी) ने ज्याँ मोनेट की अध्यक्षता में काम शुरू कर दिया. दरअसल ज्याँ मोनेट की शूमाँ घोषणा-पत्र के पीछे मुख्य प्रेरणा थे. इस संगठन ने फ्रांस के स्टील उद्योग को जर्मनी से कोयला देने की गारंटी सुनिश्चित की. इसने ब्लेजियम और इटली की कोयला खानों में सुधार के लिए धन भी मुहैया कराने का प्रावधान किया. जर्मनी इस पर सहमत हो गया और उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सम्मान हासिल करने के लिए स्टील उत्पादकों के संगठनों को भी भंग कर दिया. 31 जनवरी, 1954 कोरिया युद्ध के बाद अमरीका ने दबाव डाला कि यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए ज़्यादा धन अदा करना चाहिए और जर्मनी का फिर शस्त्रीकरण होना चाहिए. 1952 में ईसीएससी के छह सदस्य देश यूरोपीय रक्षा समुदाय बनाने पर सहमत हुए जिनमें जर्मनी के सैनिक भी यूरोपीय सेना में शामिल होने थे. लेकिन फ्रांस की संसद ने इस संधि को मंज़ूरी देने में देरी की और आख़िरकार 1954 में उसने इस विचार को ही ख़ारिज कर दिया. |
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